स्याह इंद्रधनुष और चाँदनी रातें

I think therefore I am …… I think !!! Cut the crap, I am here to write so that I get loads of traffic and I feel important ……

के बोले मां तुमि अबले !

जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी !

——————–
के बोले मां तुमि अबले!
बहुबलधारिणीम् नमामि तारिणीम्,
…रिपुदलवारिणीम् मातरम् |

———————
पर अम्ब तेरे पूत रिपु बने हैं,
भाई ने भाई का रक्तपान किया है,
सोवरेन सोशलिस्ट सेक्युलर डेमोक्रेटिक रिपब्लिक में,
कैपिटलिस्म का अवतार एंटीलिया खड़ा है !

Filed under: कविता, वन्दे मातरम्

दूर किनारा है !

तुम भूले हो अंधियारे में राह किनारे की,
और घने बादलों में ध्रुव तारा भी छुपा हुआ,
बहते जाना धारा के संग लगता तो आसां है,
पर थामो पतवार नाविक दूर किनारा है |

दिल डूबा जाता है और याद प्रिय की आती है,
ठन्डे थपेड़ों में भीग तन-मन कांप जाता है,
मचलती हैं मछलियाँ जल में, बाजुओं में भी,
खेते जाओ नाविक अभी दूर किनारा है |

ले रौशनी खड़े हो कर चट्टान पर किनारे की,
तेरी बाट जोहते होंगे जो रखते होंगे सारोकार
लहरों के उठने बैठने पर आस टूटती-बंधती होगी,
तुझे रखनी है आस नाविक दूर किनारा है |

Filed under: कविता, दर्शन, Hindi Poetry, Kavita, , ,

एक प्रयास फिर से !

चाहता तो हूँ की तोड़ सब बंधन, उठ जाऊं, खड़ा हो जाऊं,
सांस लूं पूरे फेफड़े फैला कर, पर, जकड़न बहुत है – सोच भी बंधी सी है |
निस्सिम शक्ति है भीतर, सुना है, सुनते आये हैं,
और कभी कभी लगता भी है की सच सुना है – महसूस किया है,
पर जैसे अफीम खाई है, अकर्मण्यता का प्रण लिया है|

लक्ष्मी की विफल आराधन में रत सरस्वती पुत्र ने
आज तुम्हारे कहने पर प्राण, फिर कलम चलायी है,
देख कर बताओ ज़रा, माँ शारदा भी खिन्न तो नहीं कहीं ?

Filed under: Uncategorized

तिमिर हरो !

तिमिर हरो हरि,
प्रकाश करो,
चहुँ ओर,
मन में !

आ बैठो कृष्ण
मन में,
अश्व चपल हैं,
रास खींचो हरि !

अपने हाथों
दीप जलाओ,
मन में,
तिमिर हरो हरि !

खंडित मन के
टुकड़े संजो
फिर से सजाओ,
तिमिर हरो हरि |

प्रकाश करो
दीप जलाओ,
तिमिर हरो,
तिमिर हरो हरि |

Filed under: दर्शन

My Angel

She came !!! My little daughter entered this world today. I love her.

Filed under: Child,

कल तस्वीर में मैं रहूँ, न रहूँ ।

Shaam

मेरी पीठ पीछे, शाम तुम ढली जाती हो,
मैं जानता हूँ कि तुम चली जाती हो,
फ़िसलते-लुढ़कते इस सूरज के साथ,
सामने से घिरी आ रही है रात ।

मगर रात भी तो मेहमान है
बस रात भर की ही, चली जाएगी,
जैसे जीवन में आते-जाते हैं सुख-दु:ख,
जन्म मृत्यु, यौवन-बुढ़ापा, श्वास-नि:श्वास ।

सुहानी शाम तुम रात में अंगडा़ईयाँ ले कर
कल सुबह की गोद में दम तोड़ दोगी,
कल शाम मैं किसी और शाम के साए में,
यूँ तस्वीर खिंचाता नज़र आऊंगा ।

या जाने, कल तस्वीर में मैं रहूँ, न रहूँ ।

Filed under: दर्शन, , , , , ,

हाट – The Sunday Market

Village Haat

सुबह से ले के शाम तक,
जूतों से ले के गेहूं- दाल तक,
सब खरीदते-बेचते हैं ठाठ में
भीड़ भरी इतवार की हाट में ।

वहां चने भी हैं और खिलौने लकड़ी के,
मई मे जहां लगते हैं ठेले ककडी़ के,
सिक रहीं हैं मूंगफलीयां चटर-चटर
बिक रहे किलो के भाव से मटर।

लाल पीली बंधी सिरों पे पगडी़यां ,
चल रही डाल पैरों में जूतीयां
एक तीली से जला रहे दो बीड़ीयां,
ठंड है, खरीद रहे सस्ती सिगड़ीयां ।

हंस रहा है कालू और उसका बाप भी,
जब नाचे बंदर लय में ढोलक के थाप की ।
समेट रहे कुछ सामान, कुछ गिन रहे दिहाडी़,
कुछ चल पडे़ हैं पकड़ने गांव की गाड़ी।

कई चल पडे़ संजो के हफ़्ते भर के सपने,
पल जाऐंगे सात दिन कुटुम्बी और अपने ।
सब खुश हैं कर ली है एक और हफ़्ते की जुगाड़,
सब आज में ही जीते हैं, जीवन नहीं पहाड़ ।

The above photograph is a copyright of Rakesh Ranjan, it is reproduced here with his permission. Click here or photograph to visit the source.

Filed under: कविता, Hindi Poetry, Kavita, Poetry, , , , ,

ज़िन्दगी पर दो

——पहली——

(जोगिन्दर साहब, आप से आज हुई बातों से प्रेरित । आपके आगरे के घर की दीवारों पर उभर आई पपड़ीयों को समर्पित)

दबे पैर निकली जा रही हो,
तुम तेज़ रफ़्तार से चलकर
मेरे कदमों के नीचे से
चुपचाप – ज़िन्दगी ।

ज़रा रुको तो, दम तो लो,
अभी बचपन भी नहीं जीया,
कहानीयां सब सुनी नहीं,
नहीं खेला खेल जी भरकर अभी ।

सपने देखे भी नहीं रंगीं,
मन भर नहीं हुई होली-दिवाली,
पिता के कंधों पर बैठ दशहरे पर
अभी देखने हैं जलते रावण कई ।

तुम तो चली जा रही हो,
मुड़ कर भी क्या देखोगी नहीं?
मुझे पसन्द थे वो दिन,
मगर वो तो तुम लौटाओगी नहीं !

यौवन भी बीता जाएगा,
तेरा चक्र चलता जाएगा,
पता नहीं कहाँ पहुँचूंगा मैं,
जाने तू कहाँ ले जाएगी ।

अधेड़ से बूढ़ा फिर एक याद,
फिर तो राख भी खो जाएगी,
क्या उसके बाद भी है कोई सफ़र
वक्त की धार ही बताएगी ।

——–छोटी सी दूसरी——-

मैं क्या करूँ, तेरा क्या करूँ,
तेरे साथ मैं ऐसा क्या करूँ
कि जब तू न रहे तो भी यह रहे
मैनें तेरे साथ, ज़िन्दगी, इन्साफ़ किया ।

Filed under: कविता, Hindi Poetry, Kavita, , , , ,

एक अच्छी लघु कथा

एसे ही इन्टर्नेट पर घूमते घूमते एक अच्छी सी लघु कथा पढ़ने को मिलि, आप का ध्यान भी आकर्षित करना चाहूंगा :

(This is meant for you even if you have been redirected here from my tweet)
पश्चाताप

Filed under: Uncategorized, , , ,

-माँ-पा

कल अपने ब्लॉग पर लिखि कविता का लिंक भेजा था आपको, आपने जवाब में ये भेजा :

प्यारे बेटे,
हमने देखा, हमने सुना, हमने पढा …….
समझें कैसे अपने बेटे को ! ! !

-माँ-पा

———————————————-
मैं आपको बता देना चाहता हूं कि आप ने मुझे वो सब कुछ दिया जो आप दे सकते थे और जो मुझे चाहिये था । मेरे जीवन कि एक उपलब्धि यह है कि मैं आपके साथ रहता हूं, यह उपलब्धि इसलिये है क्योंकि लाखों बेटे इस दुनिया में एसे हैं जो अपने माता पिता के साथ किसी कारण से या किसी बहाने से नहीं रह पाते ।
और अगर आप यह जानना चाहते हैं कि मुझे आप से और क्या चाहिये तो मेरा आपको जवाब यह है कि आपका मुझे “प्यारे बेटे” कह देना मेरे लिये अनंत को पा जाने के बराबर है ।
भीगी आंखों से मैं आपको यह संदेश एसी जगह पर दे रहा हूं जहां इसे कई लोग पढ़ेंगे, सो पढें वो भी और आप भी कि आप से अधिक मुझे और कुछ नहीं चाहिये ।

Filed under: Uncategorized,

स्याह इन्द्रधनुष – चांदनी रात

प्रियवर, इस ब्लॉग का प्रयोग मैं अपने आप को अभिव्यक्त करने के लिये करता हूं और आप का स्वागत है मेरे अन्दर झांक कर देख लेने के लिये ।
आम तौर पर मैं कविता के माध्यम से अपने आपको व्यक्त करता हूं, मैं हिंदी का पंडित नहीं हूं, त्रूटि हो जाने पर कृपया उसे मेरे ध्यान में लायें एवं मुझे क्षमा करें ।

Kerala - God's Own Country

Death – By Grey Rainbow

There is so much that we think we will be able to do in this life,
there is so much we want to believe we will accomplish.
And then comes death, suddenly, it comes to the person closest to your heart.
There is nothing after that, no dreams, no desires, there is nothing to be accomplished. One thing remains :
TIME - and you don't know how to kill it.

GOD

इस घट अन्तर बाग बगीचे,
इसी में सिरजनहारा|
इस घट अन्तर पारस मोती,
इसी में नौ लख तारा|
इस घट अन्तर सात समन्दर,
इसी में उठत फ़ौव्वारा|
इस घट अन्तर अनहत गूंजे,
इसी में सांई हमारा|

Kabir - God lives within, not without

कारवां गुज़र गया

हाथ थे मिले कि जुल्फ चाँद की सँवार दूँ,
होठ थे खुले कि हर बहार को पुकार दूँ,
दर्द था दिया गया कि हर दुखी को प्यार दूँ,
और साँस यूँ कि स्वर्ग भूमी पर उतार दूँ,
हो सका न कुछ मगर,
शाम बन गई सहर,
वह उठी लहर कि दह गये किले बिखरबिखर,
और हम डरेडरे,
नीर नयन में भरे,
ओढ़कर कफ़न, पड़े मज़ार देखते रहे।
कारवाँ गुज़र गया, गुबार देखते रहे!

(c) - श्री गोपाल दास नीरज ।